पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१४

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३ को फाड़ चुकी हैं, और वह दिन पा चुका है कि वे पुरुषों ही के समान संसार में सामाजिक अधिकार प्राप्त करेंगी। प्राचीन काल की कन्याएं १४ विद्या और ६४ कलाएं जानती थीं; इसकी पुष्टि में हजारों कहानियां और किम्बदन्तियां सुनी जाती हैं चौंसठ-कला पुरानी नीति की पुस्तकों में ६४ कलाओं की चर्चा है। इन कलाओं को सीख कर मनुष्य खूब चतुर हो जाता है, भागवन् में लिखा है कि श्रीकृष्ण महाराज ने ६४ दिनों में ६४ कलाएं मीख ली थी। शुक्रनीति में ये कलाएं इस प्रकार गिनाई गई हैं:-- आयुर्वेद-शास्त्र सम्बन्धी १० कलाएँ--- 1--नाचना । २--अनेक प्रकार के बाजे बजाना । ३–गहने और कपड़ों को सुन्दरता से पहनना । ४--अनेक प्रकार के शृंगार करना या रूप बनाना । ५-विविध प्रकार की सेन बिछाना और उन्हें फूलों और छपरखट आदि से सजाना । ६--ताश, शतरंज प्रादि खेलों से मन बहलाव करना । ७--भाँति-भाँति के हाव-भाव आदि मीग्वना । १--श्रासव, सिकी, प्रचार प्रादि बनाना । २--कोटा, मुई श्रादि शरीर में घुस जाय उसे आसानी से निकालना । ३.-आँख में कंकड़ गिर जाय तो उसे झट निकाल देना। ४-पाचक चूर्ण आदि बनाना । ५--फुलवारी लगाना, साग सब्जी बोना । ६-काँच, पथर और धातु में छेद करना और उन पर भाँति-भाँति की चित्रकारी करना । ७-मिठाइयाँ और पक्कान बनाना । ८--भिन्न-भिन्न धातुओं को मिलाना और उनके श्रलंकार बनाना । --धातुओंके स्वभाव और गुणों की पहचान करन' : १०-क्षार बनाना। धनुर्वेद सम्बन्धी ५ कलाएँ१-शस्त्र चलाने के पैतरे से खड़ा होना । २--कुश्ती लहना ।