पड़ती है । फलालेन, बनात, कश्मीरा, सज, कम्बल यादि ऊनी कपडे उपयोग में लाने के पश्चात् खूब अच्छी तरह किसी यस्त्र या बुरश से साफ करके खुली हवा या धूप में रख देना चाहिए जिससे उनके दुर्ग- न्धित परमाणु नष्ट हो जावें । इसी भांति रेशमी तथा सूती वस्त्रों की भी करनी चाहिये । इन वस्त्रों को सन्दूक या किसी गठरी में बाँध कर रखना अच्छा नहीं, इससे उनमें वायु नहीं पहुँचती और कीड़ा लगने का भय रहता है । वस्त्रों को सीधा न रखने से उनकी तह टूट जाती है और उनमें शिकन पड़ जाती हैं, जिससे वस्त्र की शोभा मिट जाती है, श्रतः उन्हें श्रालमारी में रखना चाहिये जो इसी काम के लिये बनी हों। ऋतुओं के अनुसार वस्त्रों को स्वच्छ वायु और धूप दिखाते रहना चाहिये। कपड़ों को कीड़े से कैसे बचाया जाय- शरद ऋतु के अनन्तर प्रायः गर्म काड़े प्रयोग में नहीं लाए जाते; वह लगभग आठ महीने सन्दूकों में भर कर बिल्कुल असावधानी से रख दिये जाते हैं; जिस से उन में कीड़े लग जाते हैं और बहुमूल्य वस्त्रों का सर्वथा नाश हो जाता है । कपूर, पीसी हुई लौंग, नेप्थलिन, चन्दन का बुरादा, सीडर की लकड़ी, फिटकरी का चूर्ण, सांप की केंचुली, नीम और दोना मावा की पत्ती, काली मिर्च का चूर्ण, इत्यादि ऐसे पदार्थ हैं, जिनकी उग्र गन्ध से कपड़ों में कीड़े नहीं लगते । सफेद कपड़े की छोटी- छोटी थैलियां बना कर उन में उपर्युक्त चीजों में से एक चीज को भर दो और कपड़ों की तहों में रखते जायो, जिससे कपड़ों में दुर्गन्ध उत्पन्न न होगी। कीड़ा नहीं लगेगा, और वस्त्र सुरक्षित रह सकेंगे। कम्बल इत्यादि बड़े कपड़ों को तहा कर सन्दूक के अन्दर कभी नहीं रखना चाहिये; जहां तक हो सके बाहर ही रहने देना चाहिए, यदि श्रालमारी में बन्द कर के रखना हो तो, उपयुक्त यत्न के साथ रखें। उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त वस्त्रों को समय-समय पर हया लगाते
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