पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१६२

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। डोरी गूधना, माला, हार गूथना, फूलों के गहने बनाना, माला, पहुंची आदि पटवे की भांति पो लेना इत्यादि पिरोना कहाता है । गोखरू बनाना, ठप्पे बनाना, किरन बनाना या उत्तू करना श्रादि काम भी है । ये सब काम स्त्रियों को सीखने चाहिये । इसमें खर्च कुछ भी नहीं । सिर्फ कैंची, सुई, डोरा, वेडा और गज की ही जरूरत है सीने की रीति--सुई को अंगूठे और बिचली उंगली से थामते हैं और अंगूठा और बीच की उंगली से सुई को दबा कर चलाते हैं। अनामिका में वेडा पहनते हैं, जिससे सुई दबाने में उसकी रक्षा होती है। सदा सुई डोरा कपड़े के अनुसार मोटा पतला लेना चाहिए। गंजी तथा गाढ़ा खद्दर के लिये चर्खे के कते मोटे डोरे, सुई भी मध्यम चाहिये। गोटा, पट्टा, गोखरू के लिये मुई बहुत महीन और पेचक का डोरा बेना चाहिये। सिलाई भिन्न भिन्न प्रकार की होती है । सिलाई में दो टुकड़ों के छोर साधारण मिला कर जोड़ देते हैं । इसी को भीतर की ओर उलट कर सीने से उलटना कहते हैं । इसी को तुरपना भी कहते हैं । यह भी दो प्रकार का होता है। गोल और चौड़ा । तोसरी सिलाई बग्विये की होती है । जो इस प्रकार की जाती है, जहाँ से सुई चुभोई वहां से फिर पिछाड़ी को लेकर श्राधी दूर पर चुभाई और पहले के बराबर दूरी पर निकाली, फिर पीछे को लाकर जहां से पहले सुई निकाली थी उसी छेद में उसे पिरो कर उतनी ही दूर जा निकाली। इसी भांति सिलाई का सिलसिला जारी रखो। ऊपर तो बराबर और दोहरी सिलाई होती चली जायगी। सी में नीचे कांटेदार बखिया श्राएगा जिसमें लहर पड़ती जाएगी। तेपची और जाली की सिलाई मजबूत डोरे से की जाती है । यह काम करती बार कपड़े के दोनों छोरों को उलट कर तुरप देते हैं तब वह चमकती है।