पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१६३

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फलीता काला या लाल रंग का एक डोरा होता है, जो मगजी, संजाफ के किनारे लगाया जाता है। संजाफ या गोट भी दो प्रकार से लगाई जाती है । एक सुदेव-सीधे कपड़े में से सीधी पट्टी कतर कर बनाई जाती है, दूसरी औरेव जो दो प्रकार से कतरी जाती है । एक तो कपड़े में से टेढ़ी काटी जाती है, दूसरी कपड़े का औरेव थैला बना कर । इसमें टुकड़े जोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती। इसकी रीति यह है कि कपड़े को अर्ज में से मोड़ कर दोनों छोर मिला कर प्राधा कर लो । और बखिया करके फिर इसका प्राधा करलो। इसी प्राधे के बराबर कपड़े के लम्बाव में चिन्ह करलो। वहाँ से फिर एक शिकन मोड़ कर वहाँ तक लामो जहाँ से अर्ज का श्राधा कर सिलाई की थी। इसको फिर जितनी चौड़ी पट्टी गोट वा मगजी चाहे उतना एक सिरे पर छोड़ कर दूसरे को सी दो । दूसरी ओर का थैला सिल जाने पर उतना ही सिरा बचेगा और थैले की सूरत निकल आवेगी। अब इसे कैंची से काट दो तो एक लम्बी धज्जी बन जावेगी । इसे भीतर की भोर सिलाई करके दुहरा खो तो गोट बन जायगी। कसीदे के काम के लिए अड्डे की जरूरत होती है । सलमा सितारे का काम भी अड्डे बिना नहीं होता-ये अड्डे बाजार में छोटे बड़े बिकते हैं। यह विद्या ऐसी है कि बहुत विस्तार से लिखने पर बहुत कम समझ में आती है । इस विद्या का सीखना तो आँखों देखने से होता है, तुम अपनी सखी सहेलियों से भांति भांति के कसीदे सीखने में सदा तुम अपने घर को सजा कर बहुत सुन्दर बना सकोगी। चित्रकारी चित्रकारी स्त्रियों की पुरानी विद्या है । आज भी स्त्रियाँ त्योहारों पर दीवारों पर उल्टी सीधी तसबीरें बनाया करती हैं । यदि वे चित्र विद्या तत्पर रहो-तो