पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१६६

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१५५ शस्य श्यामलाम्--मातरम् । शुभ्रज्योत्स्ना पुलकित यामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनी सुमधुर भाषिणीम्, सुख दाम्-वरदाम्-मातरम् ॥वन्दे०॥ त्रिंशकोटि कंट-कलकल निनाद कराले, द्वित्रिंशकोटि भुजै पृत खर करवाले । के बोले मा तुमि अबले। बहुबलधारिणीम् नमामि तारिणीम्, रिपुदलबारिणीम्, मातरम् ॥वन्दे।। राग-भूपाली अयि भुवन मन मोहिनी! अयि निर्मल सूर्य करोज्ज्वल धरिणी! जनक जननी जननी! नीलसिन्धु जलधौत चरणतल । अनिल विकसित श्यामल अंचल । अंबर चुंबित भाल हिमाचल । शुभ्र तुषार किरीटिनी । प्रथम प्रभात उदित तवगगने । प्रथम सामरव तव तपोवने । प्रथम प्रचारित तव वन भवने । ज्ञान धर्म कत काव्य काहिनी। चिरकल्याणमयी तुमि धन्य, देश विदेशे वितरिछो अन्न, जान्हवी जमुना विगलिद करुणा, पुण्य पीयूप-स्तन्यवाहिनी !