पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१६९

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१५८ घुटना कुछ झुक जाए । दोनों हाथों को सीधे सिर से ऊपर ले जाश्रो । कुछ समय खड़ी रहो। 4-सीधी खड़ी रहो । दाहना पैर दाहिनी ओर को सीधा फैलायो । पर पिछली टाँग मुड़े नहीं । अगली कुछ मुका दो । अब दोनों को सामने ले जाकर जरा ऊंचाई पर डम्बल को मिला दो । प्रत्येक क्रिया ८-१० बार करो इससे कमर, प?, जांच और धड़ सुगठित होंगे। रक्त का प्रवाह ठीक रहेगा। -जमीन पर चित्त लेट जायो । पेरों तथा हाथों को जमीन पर लगा दो । दोनों पैरों को पास-पास सटा का रक्खो और हाथों को सीधे जमीन पर नितम्बों के पास रक्खो, फिर दोनों पैरों को एक साथ सटे हुए धीरे-धीरे उठायो । यहां तक कि कन्धे और सिर को छोड़ तमाम शरीर धरती से उठ जाए । कुछ देर इसी भांति रुके रहो। फिर धीरे २ असली हालत में श्रा जायो । अब जोर की सांस भर कर सिर और हाथों को उठाओ, और झुकते हुए पैरों के अंगूठे पकड़ लो, फिर पैरों को जितना सम्भव हो, सीधा तानों, और घुटने सिर से लगाने की चेष्ठा करो। यह व्यायाम गर्भवती स्त्री न करे । इससे पीठ, पेट,और पांवों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यकृत और प्लीहा की शुद्धि भी होती है। अग्नि दीप्त होती है । इस अभ्यास में पेट को खूब भीतर खींचना चाहिए । कन्याएं इस व्यायाम को खूब कर सकती हैं। यह सिर दर्द का उत्तम प्रतिकार है। इसका अभ्यास थोड़ा-थोड़ा करना चाहिए। १०-सीधी खड़ी हो जाओ । शरीर सीधा रहे । अब इस भाँति भुको कि सीना सीधा रहे । घुटने न मुड़े। सारा भार उदर और रीढ़ की डी पर पड़े। हाथ धीरे-धीरे पैरों के पास जमीन पर टेक दो, सिर दोनों हाथों के बीच में रहे और नाक घुटनों से छू जाए । धीरे-