पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१७०

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धीरे अभ्यास से ऐसा हो जायगा । इस क्रिया में प्राणायाम करना श्रावश्यक है। -अब यहां बायां पांव पीछ की ओर जितना संभव हो, फैलायो और उसका केवल पंजा ही घरती पर टेके रत्वो । १२-~-जब एक पैर जम जाय, तब दूसरा भी फेला दो । हाथ इस समय सीधे बिना मुड़े हों। पर दोनों संजों पर सतर रहें । सिर नीचे झुका हुअा रहे । और हाथों का फासला छाती की चौडाई के बराबर हो। १३--अब कन्धों और कुहनी पर पूरा बल देकर धीरे-धीरे मुको । यथा सम्भव पेट या छाती को धरती से न छुग्राना चाहिए । ३४--अब धीरे-धीरे ऊपर को हाथों के बल पर उठो, और सिर को यथा संभव ऊपर उठा दो । यह क्रिया गर्भवती स्त्री न करे, इससे सीना और पेट बनेगा, इस क्रिया में शुरू से अन्त तक एक ही श्वाम लेना चाहिये । दुर्बल स्त्रियाँ बीच में इच्छानुसार साँस ले सकती हैं । इसके सिवा पुरुषोचित व्यायाम भी जो स्त्रियों के लिये अनुकूल प्रतीत हों, स्त्रियाँ कर सकती हैं। गर्भावस्था में भ्रमण और साधारण घर के काम काज करना उनके लिए उत्तम है । चक्की पीसना, पानी खींचना, और दूध चलाना, स्त्रियों के लिये. उत्कृष्ट व्यायाम है। ३५--इस प्रकार बैठकर पैर के अंगूठों को जोर से खींचो और गहरा श्वास लो । सीना खूब तान लो, गर्दन सीधी रक्खो, फिर एकाएक जोर से श्वास फेंक दो, यह अभ्यास सूर्य के सम्मुग्व बैठकर चाहिये । इससे उदर, छाती की दुर्बलता, तथा बवासीर का रोग दूर होता है। पुरुष भी इसी भांति व्यायाम कर सकते हैं। उन्हें व्यायामों के लाभों पर ध्यान देना चाहिए । करना