पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/२२

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व्यसन सम्बन्धी हों। वे विशुद्ध संगीत की पद्धति पर गाये जायं । गायन सीखने को अवश्य कोई गुणी और सञ्चरित्र गायनाचार्य लगा देना चाहिए। इसके अनन्तर कन्या को कुछ पढ़ना चाहिए । यदि कन्या स्कूल नहीं जाती है तो घर पर अध्यापक आदि का प्रबन्ध कराना श्रावश्यक है और १ से १० बजे तक का समय वह पढ़ने में व्यतीत करे । १० बजे के बाद उसे रसोई में माँ की या मिसरानी की सहायता करनी चाहिए । १० वर्ष से अधिक श्रायु की कन्या को रसोई में कोई एक चीज अपने हाथों से बनाना और परोसना चाहिए। १२ बजे से भोजन आदि से निपट कर खेल, विनोद, गुड़िया, डाइंग या गपशप आदि ऐसे काम करना चाहिए जिससे शरीर और दिमाग़ दोनों को पूर्ण विश्राम मिल सके । गरमी की ऋतु हो तो कुछ काल सो भी ले । २ बजे उसे सीना कसीदा काढ़ना, कतरब्योंत करना और वस्त्र सम्बन्धी कार्य करना चाहिए, और ५ बजे थोड़ा जलपान कर गायन अथवा और कोई विनोद या मनोरंजन का कार्य करना चाहिए । ७ से ८ तक भोजन और ६ बजे शयन करना चाहिए। साधारणतया यह दिनचर्या थोड़े परिवर्तन के साथ १६, १७ वर्ष की अायु तक की कन्यायों तक चल सकती है। कन्याओं के लिये सोने के लिए भी कुछ खास बातों की अावश्यकता है। पहली बात तो यह है कि वे ५ वर्ष की आयु के बाद कैसी ही अवस्था में हों, नंगी न सोवें, हलका कुती धोती अादि अवश्य पहने रहें । कोई कपड़ा कसा हुअा न हो ग्वासकर सीने पर। धोती ढीली बांधी जाय । और वह नामि के पास हो-बहुत नीचे नहीं। बिछौने में बहुत गुदगुदे गढ न हों बल्कि शतरंजी और साफ चादर काफी है । यथा सम्भव तकिया न दिया जाय । सिर का जूड़ा खोल दिया जाय । जिससे उसका सिर सम- धरातल पर होने से रक्त का ठीक प्रवाह मस्तिष्क की अोर बना रहे । यदि तख्त पर उसे सुलाया जाय तो अच्छा है । चादर सफेद और साफ