सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सुनानी चाहिएं। फिर बालिका जो शंका करे उसका खूब विस्तार से समा- धान करना चाहिए । कहानियाँ हमेशा रात को सुनानी चाहिएं। कन्याओं को शीघ्र ही कहानी सुनने की ऐसी चाट पड़ जायगी कि ३ वर्ष की बच्ची का भी सोने का समय नियत हो जाएगा। ५ वर्ष की होने पर उन्हें राजा-रानी, व्यापारी तथा घर-गृहस्थ सम्बन्धी, कुछ अाश्चर्य भावों से युक्त, कुछ हास्य विनोद युक्त कहा- नियाँ सुनानी चाहिएं। कभी-कभी मूओं और शेग्व चिल्लियों की ऐसी कहानियाँ मुनानी चाहिए । जिन्हें सुन कर पात्रों की भूलों को वे स्वयं ही समझ जांय ८.६ वर्ष की होने पर उन्हें ऐतिहासिक कहानियाँ सुनानी चाहिएं। प्रथम रामायण, महाभारत और पुराण सम्बन्धी पीछे १० वर्ष की बालिका को श्राधुनिक ऐतिहासिक कहानियाँ सुनाई जायं। कभी कभी राजपूतों, मराठों, वीरों, साधुओं, धर्मात्माओं और देश भक्तों के जीवन की उत्तम उत्तम घटनाएं, यात्राओं के वर्णन, उनके साथ भौगोलिक विषय, भिन्न-भिन्न प्रान्तों की विशेपताएं, रहन-सहन ऋतु फल आदि के वर्णन, विस्मय, हास्य, विनोद उत्साह आदि भावों का पुट देकर सुनाए जाएं। बड़े-बड़े नगरों के वर्णन, रेल यात्राओं, जल यात्राओं के भेद, यात्रा सम्बन्धी सावधानियां प्रादि सब बातें बताई जाय । १२ वर्ष से ऊंची श्रायु की कन्या को जीवन-चरित्र और इतिहास के संपूर्ण वर्णन सुनाए जायं । उन्हें बहस करने, प्रश्नोत्तर करने और शंका- समाधान करने का पूरा पूरा मोका दियाजाय । इस प्रकार यह मौखिक शिक्षा रात्रि को शान्तभाव से निरन्तर जारी रहनी चाहिए। सोहलवाँ वर्ष प्रारम्भ होते ही, यदि कन्या की सगाई हो गई हो तो उसे ससुराल के जीवन-सम्बन्धी कहानियाँ सुनाई जा सकती हैं। इनमें बहुतसी फूहड़ों की कहानियाँ, बहुत-सी लड़ाकाओं की कहानियाँ, बहुतसी