पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/२९

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85 भवपूर्ण एक सम्मति है कि ऐसी कन्याओं का एन्ट्रन्स की परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर विवाह कर दिया जाय । वर भी छात्र होना चाहिए। फिर वर-वर्ष एक दूसरे के तत्वाभिधान में कालेज में शिक्षा प्राप्त करें। इस योजना में बहुत से सुभीते हैं जो हम भारतीयों की परिस्थिति के अनुकूल हैं । ऐसी योजना से कन्यायें बहुतसी कठिनाइयों और नाजुक कुअवसरों से बच जावेंगी और माता-पिता बहुत से उत्तरदायित्व से मुक्त हो जावेंगे । परन्तु इतना होने पर भी वे लोग कौमार्य-प्रत का, विद्याथी जीवन रहते पूर्णतया पालन करें, पवित्र मित्रवत् रहें, परस्पर सहायता, सह- योग करें, परन्तु पति-पत्निवत् न रहें । यह व्रत भंग हुआ कि उच्च शिक्षा प्राप्ति का महत्व भंग हुश्रा । हाँ, ऐसी कन्याएं, जो अपनी परिस्थिति और अपने भविष्य पर विचार करने की योग्यता रखती हों, और विवाहित जीवन को आजीवन या कुछ काल के लिए नापसन्द करती हों उन्हें अवश्य ही अपने स्वतन्त्र और पवित्र जीवन का विकास करते हुए कौमार्य-प्रत में ही उच्च-से-उच शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। अध्याय चौथा तमीज और सलीका श्राप की पुत्री चाहे जितनी भी बदसूरत हो-यदि उसमें वमीज और सलीका है तो वह अपने तमाम ऐबों को ढक लेगी। और यदि उसमें तमीज और सलीका नहीं है तो वह हजार सुन्दरी और शिक्षिता होने पर भी ससुराल में नेक-नाम और प्रिय नहीं हो सकती। यदि सुन्दर और शिक्षिता कन्याएं तमीज और सलीका सीखी हुई हों तो वे स्त्रियाँ नहीं देवी की उपमा को धारण कर सकती हैं। तमीज और सलीका बदसूरत लड़कियों को भी सुन्दरी बना देता