है। वह अपनी चतुराई से अपने शरीर को और घर को ऐसा सजाती हैं कि उसकी शोभा हजारगुनी हो जाती है । वे अपने अदब-कायदे से घर के सभी छोटे-बड़ों को वश में कर लेती हैं । पर जो लड़कियाँ इन दोनों गुणों से रहित होती हैं, उन से सब लोग रूटे रहते हैं, उन्हें फूहड़ घमण्डी और कामचोर कहा करते हैं । जब ये किसी कष्ट में पड़ती हैं तो सबको खुशी होती है । प्रायः स्त्रियाँ उन्हें चिढ़ाया करती हैं। कहावत है 'काम प्यारा होता है, चाम प्यारा नहीं', ऐसी गोरी चिट्टी बहू को कोई नहीं पसन्द करता जो काम करने में प्रालसी, फूहड़, बात करने में गंवार, रहन-सहन में भट्टी और व्यवहार में बेतमीज, स्वायी और कर्कश हो। खाना, पीना, सोना, बैठना, उठना, चलना, फिरना, काम करना, बोलना, हंसना, हाथ पैर हिलाना, नहाना, धोना श्रादि प्रत्येक काम में तमीज और सलीका चाहिए । जिस घर में सलीकेदार बहू पहुँच जाती है उसका दरिद्र दूर हो जाता है । और जिस घर में बेसलीके की फूहड़ पहुँच गई वह सोने का घर भी मिट्टी हो जाता है । हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमान परिवारों की स्त्रियाँ अधिक सलीके- दार होती हैं । उनकी बोल-चाल, सभ्यता, हंसी-मजाक, बातचीत सभी में एक सलीका होता है। मुस्लिम राजत्व काल में अदब कायदों की बहुत शिक्षा दी जाती रही है । अब तक उनमें उसका प्रभाव है । सबसे प्रथम बात जो सलीके की दृष्टि से सीखनी है वह अपने कपड़े-लत्तों के सम्बन्ध में है। यह श्रावश्यक नहीं कि तुम बढ़िया कपड़े ही पहनो । यदि तुम में तमीज और सलीका है तो घटिया कपड़ा ही सुन्दरता से पहनोगी, वह बहुत भला लगेगा । यदि सलीका नहीं तो बढ़िया कीमती वस्त्र भी भद्दा लगेगा और वह जल्द खराब हो जायगा । बहुत सी लड़कियाँ कपड़-फाड़ मशहूर होती हैं । कपड़े, जूते या कोई