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पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/३१

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२० भी चीज उनके पास ठहरती ही नहीं। यह उनकी बेतमीजी की आदत का फल है । माता-पिता को चाहिए कि उन्हें इस बात की बचपन ही से शिक्षा दें कि वे कपड़ों को सावधानी से पहनें । दीकार या किवाड़ के सहारे खड़ा होने या बैठने की आदत अकसर लड़कियों को हो जाती है । पीछे वह जन्म भर नहीं छूटती, इससे शरीर में पालस तो भर ही जाता है साथ ही कपड़े भी जलद मैले और गंदे हो जाते हैं । जी चाहे जहाँ जाना भी बुरी आदत है । परस्पर लड़के-लड़कियों का लिपटना,, झपटना, कपड़े खींचना, उलटे-सीधे कपड़े पहनना ये सब यादतं बचपन ही से न डालना चाहिए। कपड़ों के बाद सिर की सम्भाल । मलीके वाली लड़कियों को दिन में तीन-चार बार अपने हाथ से अपने बालों को सम्हालना चाहिए बालों को कंधा करने से बाल मजबूत, सुन्दर और घृवरवाले होते हैं। उनकी जड़ में मैल नहीं जमता, जू नहीं पड़ती। जिन लड़कियों के बाल साफ बंधे हुए होते हैं वे बड़ी सुन्दर मालूम होती हैं । भूतनी की भांति सिर खोले फिरना लड़कियों के लिये सर्वथा अयोग्य और अशुभ है। माताओं को चाहिए कि वे उन्हें अपने हाथों से सिर करने और जूड़ा बांधने की आदत डालें । सिर में डोरे बाँधना, कस कर सिर बाँधना, कस कर मैडियाँ गृथना ठीक नहीं। माद पिनों के द्वारा बालों को अट- काए रग्वना उत्तम है। उठना बैठना दूसरा सलीका है । लड़कियों को सदैव इस बात की शिक्षा देनी चाहिए कि वे कब किस भाँति उठे, बैलें, और सोवें । यदि कुर्सी मोटों पर बैठना हो तो कदापि पैर ऊपर करके न बैठें। यदि वे ऐसा करें तो उन्हें तत्काल रोक दिया जाय । दो-चार स्त्रियां या पुरुष बैटे बातें कर रहे हों तो वे बीच में घुस कर न बैठे। वरन् वहां से चली जॉय और बुलाने पर श्राकर विनय और सभ्यता से बड़ों को प्रणाम करके बैठे, जो कहा जाय उसका विनम्र उत्तर दें। अकेले में भी