पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/३२

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२१ बैठती बार कपड़ों की सम्हाल रक्खें । साफ और कीमती साड़ी सिकुड़ न जाय, गंदी न हो जाय, कोई चीजें जेवर श्रादि टूट न जाएँ इसका पूरा ध्यान रखें। पलँग पर या चौकी पर, जब वहाँ कोई बड़ा सम्बन्धी बैठा हो तब पट्टी पर और नीचे करके होशियारी से बैठना चाहिए। सोने के लिये कभी उन्हें नंगा न होना चाहिए । सदेव हल्का वस्त्र पहन कर सोना मुनासिब है । दूसरी लड़की, स्त्री या बालक के साथ एक बिस्तरे पर कभी न सोना चाहिए । मुह ढाँप कर सोना भी ठीक नहीं। ऐसे वस्त्र पहन कर सोना अनुचित है जिसके हट जाने का अन्देशा हो । तीसरा सलीका बातचीत करने का होना चाहिए । हंसकर बात करना बुरा नहीं, पर बात-बात पर दाँत दिग्वा देना, बात करते-करते इतना हंसना कि बात-चीत ही बन्द हो जाय, अच्छा नहीं । खूब जोर से भी चाहे जब हंस पड़ना बुरा है । वास्तव में हमने की बात पर ही हंसना शोभा देता है । हंसी के मौके पर भी न हंसना फूहड़पन । मन्द मुस्कान एक प्यारी वस्तु है। उसमें दोनों के दर्शन न हों। वह दूसरे दर्ज की मुस्कान है और उननी मुम्कान वहीं होनी चाहिए जहाँ कुछ घनिष्टता हो । चवर-चवर करके जबान चलाए जाना, या इतरा कर, हकला कर अथवा हवर-सबर करके बोलना बहुत बुरी आदत है । बीच-बीच में जिद करना, नाक में बोलना, मिनमिनाना ठीक नहीं। बात को साफ, शुद्ध और सुदु स्वर में कहना, वात करती बार सीधी बड़ी होना मुग्व या हाथ पैर न हिलाना, यह बातचीत का ढंग होना चाहिए। चौथा सलीका भोजन करने का होना यावश्यक है। भोजन करने के लिए बैठना सबसे मुख्य बात है। ग्रामन या चौकी पर हमेशा पालथी मार कर सीधी बैठना चाहिए । यदि कुर्मी पर बैठ कर भोजन करना है तो सीधी वैरना चाहिए । भोजन करते समय दोनों हाथों को जूठा न करना चाहिए । खाते समय इस बात का ध्यान रखा जाय कि कपड़ों पर भोजन की बँद न गिर पड़े दसरी बात यह है कि ग्वाने की आवाज न मुनाई