पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/३३

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पड़े। चप-चप करके खाना या सुड़-सुड़ कर सपोटना बुरी आदत है । खाते समय मुँह में भोजन दीख पड़ना भी दूषित है । ऊंचा मुह करके खाना या बहुत सा ठूस-ठूस कर खाना भी ठीक नहीं। न इतनी जल्दी खाया जाय कि अन्धाधुन्ध ठूस लिया जाय और न इतनी देर में खाया जाय कि बैठे-बैठे घन्टों गुजर जायं । खाते समय हाथ और मुख खाद्य पदार्थों से भर न जाय इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए। उंगली या अंगूठा चाटना ठीक नहीं, यदि बोला जाय तो बहुत कम और इस होशियारी से कि न तो मुँह का कोर गिरे, न सामने वालों को दिखे, न स्वर में अन्तर पाये। बातचीत का भी विषय ऐसा न हो कि सुनने वालों को घृणा उत्पन्न हो या वे फूहड़ समझे। चाय आदि पानी, या फलाहार की पार्टियों में जहाँ ज्यादा बेतकल्लुफी न हो आँख बचा कर दूसरों को खाते-पीते देखते रहना चाहिए। ऐसी पार्टियों में पेट भर नहीं खाया जाता , विनोद के साथ जल पान मात्र किया जाता है। ऐसे अवसरों पर सब के बाद तक खाते रहना ठीक नहीं -न तश्तरी ही सफाचट करना चाहिए । ऐसे स्थानों पर मर भूखों की तरह खाद्य पदार्थों की और एकटक देखते रहना भो बेत- मीजी है। खाते वक्त भी सिर्फ खाने में ध्यान रखना ठीक नहीं, धीरे-धीरे उपयुक्त बात चीत, परिहास होते रहना चाहिए । पाँचवां सलीका घर के और अपने सामान तथा चीज वस्तु को सम्हा- बना, करीने से रखना, सजाना, रद्दी चीजों की मरम्मत कर उनका उप- योग करना आदि है। जिन कन्याओं को इस बात का सलीका बचपन से नहीं सिखाया जाता, वे कभी अपने घर-गृहस्थी को सुन्दर नहीं बना सकतीं । बहुधा हम देखते हैं कि कीमती कपड़े, फटे, मैले, बेतरतीबी से इधर-उधर पड़े खराब होते रहते हैं । बच्चों के कपड़ों में कहीं दाग धब्बे लगे है-कहीं बटन टूटे हैं, कहीं जूते का फीता तस्मा ही गायब । धोबी को कपड़े डालती हैं तो फटे और बेमरम्मत डाल देती हैं। फटे पुराने