पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/४२

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सकता । प्राग जलने से उत्पन होने वाली गैस भी विषैली होती है, उसमें मनुष्य का दम घुट जाने से मर जाता है। इसलिये चारों तरफ बन्द कमरों में अंगीठी जला कर या लम्प रोशन करके सोना बहुत भयानक है, कितने ही लोग इस तरह सोते-सोते मर गए हैं । दुर्गन्धित हवा भी विषैली होती है । छोटे कमरे में बहुत से मनुष्यों का सोना-बैठना भी बुरा है। जहाँ बहुत-से मनुष्यों की भीड़ हो और साफ हवा के श्राने जाने का प्रबन्ध न हो वहाँ न जाना चाहिए । घर घर ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ पर सील न रहती हो, जहाँ गन्दगी बहुत दिनों से इकट्ठी न हो, और जहाँ खुली और साफ हवा बिना रोक-टोक के पा सकती हो। मकान की कुर्सी ऊंची होनी चाहिए जिससे बाहर की नदी या बसाती पानी की सील घर के भीतर न घुस जाय । पानी का ढाल और निकास का प्रबन्ध अच्छा हो । मोरी और नाबदान पक्के बने होने चाहिएं। घर के कमरे इस तरह बने हुए होने चाहिये जिनमें रोशनी और हवा खूब पा सके, दाजे, और खिड़कियाँ श्रामने-सामने हों। अन्धेरे कमरे-जिनमें सिर्फ एक ही तंग दर्वाजा हो, कोई रोशनदान या खिड़की न हो-बीमारी का घर होते हैं । साँप, बिच्छू और कनखजूरों (गोजर) के अड्डे ऐसे ही मकानों में होते हैं । इनकी सफाई भी अच्छी नहीं हो सकती। मकान के कमरों की संख्या तो अपने सुभीते और काम-काज पर ही निर्भर हैं, परन्तु साधारण तौर से सोने का कमरा; असबाब का कमरा, काम-काज का कमरा, रसोई, गुसलखाना, पाखाना और पशुमाला काफी होगा। बैठक