पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/५३

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४२ (३) धीरज व बुध्दिमानी से सब चीजें सजा कर परोसी जायें। (४) कोई चीज हाथ से न परोसी जाय । (५) एक चीज का चम्मच दूसरी में न डाला जाय । (६) चम्मच अवश्य रख दी जाय । (७) परोसने के बाद सब की थाली में दृष्टि डाल कर देख लिया जाय कि कोई चीज कहीं रह तो नहीं गई । (८) परोसने के बाद ऐसे स्थान पर खड़ा रहे कि सब पर पूर्ण दृष्टि रहे । (९) इस बात का पूरा ध्यान रक्खे कि न तो कोई भूखा ही उठे और न कोई जिन्स खराब ही हो । सबसे अधिक सावधानी बालकों की होनी चाहिए । (१०) हाथ धुलाते समय छींटे न पड़े, तथा गन्दगी न बिखरे इसका ध्यान रखना चाहिए। भोजन में ६ रस होते हैं [१] खट्टा [२] मीठा [३] नमकीन [४] चरपरा [२] कहुआ [६] कसैला । ख का पाक खट्टा, मीठे और नमकीन का मीठा, और खारा चरपरे का चरपरा, कडुए और कसैले का कडुश्रा होता है । भोजन में प्रथम मीठा, फिर नमकीन, पीछे चरपरा, इसके बाद कडा और कसैला भोजन करना चाहिए। प्रकार की दृष्टि से भी खाद्य-पदार्थ ६ प्रकार के हैं- पेय जैसे दूध । २ लेह्य-जैसे चटनी । २ चूप्य-जैसे श्राम प्रादि । ४ चब्य जैसे रोटी आदि। ५ भक्ष्य-हलुवा आदि। ६ भोज्य-चावल, खीर श्रादि । समस्त रस और पदार्थ इन्हीं के अन्तर्गत हैं। रसोई की तैयारी रसोई बनाने में हाथ डालने से पहिले सब आवश्यक सामग्री जुटा लेनी चाहिए। सबसे प्रथम यह बात देखनी चाहिए कि किस प्रकार की रसोई बनानी है । पक्की, कच्ची या फलाहार । फिर उसकी सब जिन्स, जितनी श्रावश्यक हो जुटा लेनी चाहिए। यदि कच्ची रसोई बनानी है तो फी आदमी के हिसाब से डेढ़ छंटाक दाल, डेढ़ पाव पाटा, एक छतर- कारी, एक छ० घी, एक छ. चीनी, एक छ. चावल लेना चाहिए । पकी रसोई का भी अनुमान ऐसा ही रहना चाहिए।