पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/५४

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इसके बाद इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या-क्या मसाले दार होंगे। उन सबको निकाल कर तश्तरी में सजा लेना चाहिए। बाजार से आने वाली चीजों को मंगा कर साफ कर पास रख लेना चाहिए, भिन्न-भिन्न प्रकार के बर्तन भी आवश्यकतानुसार संग्रह कर लेने चाहिये, यदि ऐसा न किया जायगा तो बड़ी गड़बड़ होगी । जल्दी में कोई चीज ढूंढनी पड़ेगी और कोई चीज बाजार से दौड़ कर लानी होगी । नतीजा यह होगा कि रसोई भी अच्छी न बनेगी और परेशानी भी काफी बढ़ेगी। इसलिये सब चीजों को यथाक्रम पास रख लेना चाहिये । एक बड़ी बालटी में साफ जल और एक लोटा भी पास रखना चाहिये । इसके बाद सब चीजों पर एक दृष्टि डाल कर देख लेना चाहिये कि कुछ कोर-कसर तो नहीं रह गई । जो मसाले पीसने हों उन्हें पीस कर तैयार कर लेना चाहिए। यदि कच्ची रसोई बनाना है तो पहले दाल, फिर साग-भाजी, फिर चावल और सबके पीछे रोटी बनानी चाहिए जिससे गर्मागर्म भोजन सबको मिल जाय। पक्की रसोई बनाने में प्रथम मिष्टान्न, फिर साग-सब्जी और तब पूरी श्रादि बनाना चाहिए। भोजन कराने का क्रम प्रथम बालकों को, २-दुलहिन को, ३-बूढ़ों को ४ गर्भिणी को ५-रोगी को, ६-अतिथि को, ७-सेवक को, ८-पति को, अन्त में स्वयं भोजन करना चाहिए। भोजन का उपयोग मोटी दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि भोजन से पेट भरता है चाहे भी जैसे पेट भरना चाहिए । अनेकों प्रकार के खाद्य-पदार्थ शाक, दाल, रोटी, चावल, कढ़ी, पूरी श्रादि मनुष्य बहुत करके अपनी रुचि और स्वाद के कारण बनवाते और खाते रहते हैं। परन्तु भोजन पेट भरने की वस्तु नहीं, बल्कि शरीर की रक्षा और