पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/५५

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पालन करने की वस्तु है । इसलिए भिन्न-भिन्न प्रकार के कार्य करने वाले मनुष्यों का भोजन भी भिन्न-भिन्न होना चाहिए । कुछ मनुष्य शारीरिक परिश्रम करते हैं जैसे मजदूर, सिपाही, किसान, कुछ लोग मानसिक परि. श्रम करते हैं जैसे--वकील, जज, वैद्य, डाक्टर श्रादि और कुछ मानसिक और शारीरिक दोनों परिश्रम करते हैं--जैसे खाती, सुनार, कारीगर, इन सबके भोजन इस प्रकार के होने चाहिये कि प्रत्येक की जो शक्ति पय होती है वह शक्ति फिर प्राप्त हो जाय । कौन वस्तु दिमागी शक्ति बढ़ाती है और कौन शारीरिक, यह बात जानना प्रत्येक बुद्धिमान के लिये आवश्यक है। केवल व्यवसाय की दृष्टि से ही नहीं बल्कि शरीर की शक्ति और प्रकृति के आधार पर भी भोजन का निर्णय करना चाहिए। इसके सिवा देश-काल के ख्याल से भी भोजन भिन्न-भिन्न होने चाहिए । सरदी, गरमी और वर्षा में यद्यपि मौसमी फल और शाक श्रादि कुदरती तौर पर मनुष्य को ठीक रास्ते पर रखते हैं, परन्तु फिर भी मनुष्य कुऋतु के फलों और तरकारियों पर बहुत ही रुचि रखते हैं । देशों की दशा भी भिन्न-भिन्न है । गुजरात, बंगाल, दक्षिण, बम्बई, पंजाब, यू० पी० आदि प्रदेशों में रहने वालों के भोजन भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं परन्तु इन देशों में रोजगार धन्धे के लिए रहने वाले दूसरे प्रान्त के लोग उस देश की जलवायु की पर्वाह न करके अपने ही देश का अभ्यस्त भोजन करते हैं, इसीलिये रोगों के शिकार बनते हैं । उदाहरण के लिए कलकत्ता और बम्बई को लीजिये, यहां की हवा तर और गर्म है । यहां पाचन शक्ति कम हो जाती है । बम्बई का पानी लग जाना प्रायः प्रसिद्ध है। वहां के मूल-निवाली और गुजराती, मराठो तथा बंगाली लोग चावल साग आदि सुपाच्य आहार लेते हैं, परन्तु मारवाडी, जो खुश्क देश में बहुत-सा घी दाल में डाल कर खाने के अभ्यासी हैं; बम्बई-कलकत्ते में भी उसी तरह ज्यादा घी खाते रहते हैं । यू० पी० और पंजाब वाले उद