की दाल नहीं छोडने । इसका परिणाम यह होता है कि ये लोग मन्दाग्नि मेद-वृद्धि श्रादि रोगों में फंस जाते हैं। इसके लिये श्रावश्यक है कि देश, काल, ऋतु, शरीर, प्रकृति और' व्यवसाय के श्राधार पर भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन होना चाहिये। नीचे हम कुछ भोजनों के प्रयोग देते हैं, आशा है इससे पाठक पूर्ण लाभ उठावेंगे। मजदूरों के योग्य भोजन १--चावल ८ छ । दाल २ छ० । घी, तैल या बिनोले का तैल २॥ तो० शाक ३ छ.। २-दाल २॥ छ०, ज्वार का श्राटा १० छ०, तैल, घी २ तो०, शाक छ। ये दोनों प्रयोग दिमागी काम करने वाले मनुष्य के योग्य नहीं। इन भोजनों में पोषक तत्व का अनुमान ४ तोला, शर्करा ३५ तोला और चिकनाई २॥ तोला है । चिकनाई कम है, पर उसका काम शर्करा से चल जायगा। चीनी १॥ छ०, कारीगरों के योग्य भोजन-- --चावल ७ छ०, दाल १ छ०, दूध ८ छ०, घी २॥ तो०, शाक २ छ०, इसमें चिकनाई कम है पर उसका काम शर्करा से चल जायगा । बढ़िया कारीगरों का भोजन--चावल २ छ० । गेहूँ का आटा , पाव । दाल २ छ० । दूध = छ । घी २॥ तो० । शाक ३ छ० । इसमें पोषक तत्व का अनुमान ५ तो०, स्नेह ४ तो०, और शर्करा २५ तो० है। विद्यार्थियों के काम का भोजन १--चावल २ छ०, गेहूँ का आटा १ पाव, दूध ३ पाव, दाल १॥ छ०, घी १ छ०, शकर १ छ०, और शाक जितना चाहो। २--गेहूँ का दलिया २ छ०, दाल १॥ छ०, श्राटा जौ का ३ छ०, दूध ८ छ०, घी १ छ०, फल और शाक ४ छ ।
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