पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/७२

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६१ खुराक को सड़ाकर सुखाकर या पका कर खाना वास्तव में एक राक्षसी पद्धति है। यह जीवन के लिए घातक है और प्रात्मा के लिए भी विष है । प्राचीन ऋषिगण यह बात जानते थे और पश्चिम के वैज्ञानिक पण्डितों ने भी अब इसे जाना है । अाज युरोप और अमेरिका में लाग्यो मनुष्य सादे जीवन और फलाहार पर दिन व्यतीत कर रहे हैं । इसके परिणाम से वे बहुत सन्तुष्ट हैं । जब तक फल हैं तब तक जीवन है और प्राशा है । जीवन विज्ञान के जाननेवाले सैकड़ों-विद्वानों का यह मत है । फलाहार मनुष्य का स्वा- भाविक भोजन है यही बात नहीं है वरन् फलों में अनेक रोगोंको नाश करने की विलक्षण शक्ति है। बहुत लोग जानते हैं कि अंगर में अजीर्ण को दूर करने की बड़ी भारी शक्ति है-इसी तरह गठिया और जिगर के बीमारों के लिए नीबू या सन्तरा जबरदस्त प्रभाव रखता है । परन्तु अाज इनके इन गुणों से सर्वसाधारण की बात तो अलग, 'डावार, वैद्य भी लाभ नहीं उठाने । फलों के विषय में हमारी इतनी जोर की शिफारिश सुनकर यह नहीं बिचारना चाहिए कि एकाएक अपन अभ्यस्त भोजन छोड़कर सिर्फ फलाहार शुरू कर दें, रोगियों ने भी फल इतनी अधिक मात्रा में सेवन नहीं करने चाहिए कि उनकी प्रकृति में एकाएक परिवर्तन हो जाय । जिन लोगों ने अंगूर पर रहकर अपनी पाचन शक्ति को ठीक किया है उन्होंने दिन भर में प्राध सेर अंगूर से शुरु करके ३, ४ सेर तक अंगूर बाये हैं। शुरु में ये लोग अपना अपना नित्य का भोजन भी करते गये। ज्यों ज्यों अंगूरों की मात्रा बढ़ी त्यों त्यों श्राहार कम कर दिया गया और अन्त में सिर्फ अंगूरों पर ही कई सप्ताह व्यतीत किये। जो लोग अधिक भोजन करने से अजीर्ण रोगी रहते या पुरानी कफ की शिकायत रहने से जो सदा रोगी और निस्तेज बने रहते हैं उनके लिए अंगूर की यह चिकित्सा बहुत ही चमत्कारी प्रतीत हुई हैं । फ्रान्स के दक्षिण प्रान्तों में अंगूर बहुत उत्पन्न होते हैं । और फसल में दो श्राने सेर तक मिलते हैं । वहां पर कुछ क्षय के रोगियों को सिर्फ अंगूर पर