पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/७३

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६२ रक्खा गया, थोड़े ही दिनों में रोगी बिलकुल हृष्ट पुष्ट और मोटे ताजे हो गये। ऐसे रोगियों को एक या दो वर्ष तक सिर्फ अंगूरों पर ही रक्खा जाना चाहिए। गठिया बाय के विशेषज्ञ लंदन के प्रख्यात डाक्टर, अपने रोगियों को सन्तरे, अंगूर, सेव, नासपाती वगैरा खूब देते थे। इसी प्रकार फ्रांस के एक बड़े डाक्टर का कथन है कि फलों में पोटास का क्षार बहुत अधिक मात्रा में मिलता है । मैं कह सकता हूँ कि रक्त को शुद्ध करने और गठिया वात तथा दूसरी वात-व्याधियों में फलों की बराबरी करनेवाली कोई औषधि, है ही नहीं। यूरोप के एक डाक्टर चमड़ी के रोगों पर दिन में तीन बार पेट भर कर फल खाने की सलाह देते थे। उनका दावा था कि कोई कारण नहीं कि इसके सेवन करने से अतिसार दूर न हो । यह भी कहते थे कि सिर दर्द, कन्जी और दूसरे वे रोग जो पेट और जिगर की खराबी से होते हैं, झूठे और नकली फूटसाल्ट और अंग्रेजी दवाईयों से हरगिज दूर नहीं हो सकते। फलों में कुदरती रीति से पाई जानेवाली खटाई और क्षार अंग्रेजी ढंग से बनाये जाने वाले क्षार श्रादि से बिलकुल भिन्न है । ये नकली चीजें उनका मुकाबिला नहीं कर सकतीं । वैज्ञानिक किसी फल का सत्व बना सकता है, फल नहीं बना सकता । परन्तु जो विश्वास फलों पर है वह सर्वत्र सुलभ है, वह इन झूठी दवाइयों के समान दगाबाज नहीं। अन्न चावल- चावल भारतवर्ष के लोगों का सर्व प्रधान भोजन है, पन्जाब को छोड़कर और कोई भारत का भाग ऐसा नहीं जहाँ चावल न खाया जाता हो, बंगाल, दक्षिण, गुजरात और उत्तर भारत के समस्त पहाड़ी प्रदेशों