पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/७५

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भीतरी सूजन बड़े-बड़े अमीर परिवार भी जो खाते हैं, परन्तु इसकी रोटियाँ श्रासानी से नहीं बनती, क्योंकि इसमें लोच कम होता है । परन्तु जो रोगियों के लिए खास कर भीतरी बीमारियों, में बहुत उपयोगी है। अन्य धान्य-- बाजरा, ज्वार, मक्का, और जी-चने का मिश्रित प्राटा--प्रायः गरीबों का खाना है । मारवाड़ में ज्वार, बाजरा, बहुत खाया जाता है । यू० पी० के पूरवी जिलों में मक्का गरीबों का प्रधान भोजन है। बाजरा गर्म और दस्तावर है । सरदी के दिनों में यू० पी० में बाजरे की रोटी और खिचड़ी बहुतायत से खाई जाती है। बाजरा और ज्वार जब अमीर लोग खाते हैं तो घी का उपयोग ज्यादा करते हैं। दाल- दाल में अत्यन्त पोषक तत्व होता है । रोटी खानेवाले और चावल खाने वाले भी दाल का सामान्य उपयोग करते हैं, इस तरह पाटा या चावल दोनों में से जिसमें पोपक-तत्व कम होता है उसकी पूर्ति दाल के पोषक तत्व से ही होती है। यह बात स्मरण रखनी चाहिए कि जब तक दाल अच्छी तरह न पक जाएगी वह हजम न होगी। इसलिए दाल को अच्छी तरह उबाल लेना बहुत ही आवश्यक है । दाल को इतना पकाना,, चाहिए कि उसका दाना बिलकुल पानी में घुल जाए । बंगाल और पंजाब में उदै और दक्षिण में अरहर की दाल बहुतायत से इस्तेमाल की जाती है। मूंग की दाल रोगियों के लिये बहुत उपयुक्त है । मसूर की दाल में भी पोषक तत्व बहुत है। गर्म जल-वायु वाले प्रान्नों में उर्द की दाल बहुत उपयुक्त पड़ती है। गेहूँ- मीठा, ठण्डा, भारी, कफ करता, वीर्यवर्धक, बलकारक, चिकना, टूटे स्थान को जोड़नेवाला, सुन्दरता उत्पन्न करने वाला, अावाज को