आदि खेलों से मन बहलाव करना। ७-भाँति-भाँति के हावभाव आदि सीखना। आयुर्वेद शास्त्र सम्बन्धी १० कलाऐं- १-पासव, सिर्का, आचार आदि बनाना २-काँटा, सुई आदि शरीर में घुस जाय उसे आसानी से निकालना । या आँख में कंकड़ गिर जाय तो उसे झट निकाल देना। ३-पाचक चूर्ण आदि बनाना। ४-फुलवारी लगाना, साग सब्जी वोना।५-काँच पत्थर और धातु में छेद करना और उन पर भाँतिरकी चित्र- कारी करना । ६-मिठाइयाँ और पक्वान्न बनाना । ७-भिन्न २ धातुओं को मिलाना, उनके अलंकार बनाना । -धातुओं के स्वभाव और गुणों की पहचान करना । :-क्षार बनाना। धनुर्वेद सम्बन्धी ५ कलाएँ- १-शस्त्र चलाने के पैंतरे से खड़ा होना । २-कुश्ती लड़ना । ३-ठीक निशाना लगाना । ४-व्यूह रचना करना । ५-हाथी, घोड़े, मेंढ़े को लड़ाना। व्यवहार सम्बन्धी ४४ कलाएं- १-ध्यान, प्राणायाम, आसन आदि के प्रकार।२-हाथी, घोड़ा, रथ आदि चलाना । ३-मिट्टी और काँच के बर्तनों को साफ़ रखना। ४-लकड़ी के सामान पर रंग-रोगन सफाई करना । ५- धातु के बर्तनों को साफ़ करना और उन पर पालिश करना। 8- चित्र बनाना । ७-तालाब, वावड़ी, मकान आदि बनाना। -घड़ी, बाजों और दूसरी मशीनों की मरम्मत करना । -वस्त्र रंगना । १० भभके से अर्क खींचना । ११-नाव, रथ और दूसरी सवारियां बनाना । १२-रस्से बनाना । १३-कपड़ा बुनना, कातना, धुनना।
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