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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१५९

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खिचडी- दो भाग चावल और एक भाग मूंग की दाल मिला कर बारह भाग पानी में पकाए। . i

अध्याय छठा कपड़ों की सम्हाल, धुलाई और रंगाई भारतवर्ष में अंगरेजी राज्य के आने से प्रथम प्रायः सर्व साधारण मोटे खद्दर आदि स्वदेशी वस्त्रों का व्यवहार करते थे, धनिक मनुष्य यद्यपि बहुमूल्य वस्त्रों को धारण करते थे, तथापि भारत ही के अन्यान्य प्रांतों से बनाए हुयों का ही प्रयोग करते थे और उनसे व्यवसाय आदि के लिये दूरस्थ देशों से व्यापार करते और रुपया उपार्जन कर अपना सात्विक जीवन पालन करते थे परन्तु जब से पश्चिमी सभ्यता का दौर-दौरा हुआ है प्रत्येक प्राणी के मन में नये फैशन के अनुसार ही वस्त्र पहनने की इच्छा उत्पन्न हो उठी । सादा जीवन तो कोई व्यतीत करना ही नहीं चाहताः भारत की दरिद्रता का यह एक मुख्य कारण है। जब से स्त्रियों में जागृति हुई है, उनके कपड़ों का खर्चा बहुत ही बढ़ गया है। वीसियों वढ़िया घटिया साड़ियाँ ट्रंक में भरी रहने पर भी उनके मन में और भी नये-नये फैशन की