सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खुराक को सड़ाकर सुखाकर या पका कर खाना वास्तव में एक राक्षसी पद्धति है। यह जीवन के लिए घातक है और आत्मा के लिए भी विष है। प्राचीन ऋषिगण यह बात जानते थे और अब पश्चिम के वैज्ञानिक पण्डितों ने इसे जाना है। आज दिन यूरोप और अमेरिका में लाखों मनुष्य सादे जीवन पर चल रहे हैं, और फलाहार पर दिन व्यतीत कर रहे हैं। इसके परि- रणाम से वे बहुत सन्तुष्ट हैं। जब तक जीवन है और फल हैं तब तक आशा है । नवीन विज्ञान के जाननेवाले सैकड़ों विद्वानों का यह मत है। फलाहार मनुष्य का स्वाभाविक भोजन-केवल यही बात नहीं है वरन फलों में अनेक रोगों को नाश करने के भी उत्कृष्ट गुण मौजूद हैं। बहुत लोग जानते हैं कि अंगूर में अजीर्ण को दूर करने की बड़ी भारी शक्ति है-इसी तरह गठिया और जिगर के बीमारों के लिए नीवू या सन्तरा एक जबरदस्त प्रभाव रखता है। परन्तु इनके इन गुणों से सर्वसाधारण की बात तो अलग है डाक्टर, वैद्य भी लाभ नहीं उठाते हैं । फलों के विषय में हमारी इतनी जोर की शिफारिश सुनकर यह नहीं विचारना चाहिए कि एका- एक अपने अभ्यस्त भोजन छोड़कर सिर्फ फलाहार शुरू कर दें, रोगियों को भी फलों की इतनी अधिकता नहीं करनी चाहिए कि उनकी प्रवृत्ति में एकापक परिवर्तन हो जाय। जिन लोगों ने अंगूर पर रहकर अपनी पाचन शक्ति को ठीक किया है। उन्होंने दिन भर में प्राध सेर अंगूर से, शुरु करके ३, ४ सेर तक अंगूर खाये हैं । शुरु में ये लोग अपना अपना नित्य का भोजन भी करते गये । ज्यों ज्यों अंगूरों की मात्रा बढ़ी त्यों त्यों आहार कम कर दिया गया और अन्त में सिर्फ अंगूरों पर ही कई सप्ताह व्यतीत किये। जो लोग अधिक भोजन करने से ७०