अजीर्ण रोगी रहते या पुरानी कफ की शिकायत रहने से जो सदा रोगी और निस्तेज बने रहते हैं उनके लिए अंगूर की यह चिकित्सा बहुत ही चमत्कारी प्रतीत हुई हैं। फ्रांस के दक्षिण प्रान्तों में अंगूर बहुत उत्पन्न होते हैं । और फसल में दो आने सेर तक मिलते हैं। वहाँ पर कुछ क्षय के रोगियों को सिर्फ अंगूर पर रक्खा गया, थोड़े ही दिनों में रोगी बिलकुल हृष्ट पुष्ट और मोटे ताजे,हो गये। ऐसे रोगियों को एक या दो वर्ष तक सिर्फ अंगूरों पर ही रक्खा गया। लंडन के एक प्रख्यात डाक्टर जो कि गठिया बाय के विशे- षज्ञ हैं, अपने रोगियों को सन्तरे, अंगूर, सेव, नासपाती वगैरा खूब खाने देते थे। इसी प्रकार फ्रांस के एक बड़े डाक्टर का कथन है कि फलों में पोटास का क्षार इतनी अधिक मात्रा में मिलता है कि मैं कह सकता हूँ कि रक्त को शुद्ध करने और गठिया वात तथा दुसरी वात-व्याधियों में फलों की बराबरी करनेवाली कोई औषधि, ही नहीं है। यूरोप के एक डाक्टर चमड़ी के रोगियों को प्रातः दोपहर, और सायंकाल को खूब फल खाने की सम्मति देते थे। ताजे नीबू की सिकंजवीन ही वह बहुत बताया करते थे । उनका दावा था कि कोई कारण नहीं कि इसके सेवन करने से अतिसार दूर न हो । उनका यह भी कथन था कि सिर दर्द, कब्जी और दुसरे वे रोग जो पेट और जिगर की खराबी से होते हैं, झूठे और नकली फूटसाल्ट और अंग्रेजी दवाईयों से हरगिज़ादुर नहीं हो . सकते। नमक और खटाई जो फलों में कुदरती रीति से पाई जाती है, उस खटाई और क्षार से विलकुल भिन्न है जो अंग्रेजी ढंग से-दवाई की तरह बनाये जाते हैं। ये नकली चीजें उनका मुका- ७१
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