पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१००

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मानव अपने को पहचानो, भुवन नही तुम हिंसा-लालिस मधुर अहिंसा के पप से तुम हो आचरण पोर्ष प्रक्षालित, म हैं वहाँ ? बन्धु, मैं तो हूँ खडा हुआ ज्याला पवत पर, जिसके गभ देश स्फोटक द्रव्य पिपल पर फरते घघर, भाफ, धुआं है, लपटें भी है, मंडराती है आग भमानक, कौन जानता है -क्षण में ही हो जाये विस्फोट अचानक, क्षण मे ही बन सकती ससृति भस्मीभूत राश टेरो प्रलय - क्षिप्त यक्षुधा है, लेकिन सिरजन पी ललकारें मेरी। इस आग्नेय शिखर पर सस्थित अडिग अहर्निश हूँ प्रमलरत कर दूंगा शुचि स्फटिक शिला में इस ज्वाला भूधर को परिणत, खतरा है, भय है, कि कही यह भडक नखठे आग अन्तर को, किन्तु क्रान्तदर्शी ने नव को चिन्ता असफलता के डर को? हम विपपापी शनमक