पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/९९

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से अपर, हम खौचना है मानव को ज़ोर लगा नीचे क्योकि ऊध्वं गति में ही पाता यह नर निज स्वरूप चिर सुन्दर, मत पूछो मुझसे, क्या करता यदि में होता राजदण्य-धर, यदि ऐसा होता तो शायद नये चमकते चन्द्र-दिवाकर, यदि निज गृह का स्वामी होता तो मे सारे आयुध जग के- कुण्ठित - से दिखलाई देते कण्टक हट जाते जग - मग को, यदि ऐसा होता तो होता इस जग वा विश्वास और हो, तब निश्शम्नीकरण सभा का बन जाता इतिहास और ही मेरा वह सपना है जिसको मैने देखा बडे जत्तन से, जिसे देखने गो चेष्टा में लगा रहा प्राणो के पण रो, रधिर - विनाश- मृत्यु- मण्डित इस हिंसा-प्रेरित जगती तल में- मेरी यह लरकार गुंजती है इस घृणामयी चल मे इम विषपाया नमक ५