पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०१

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असफलताएं तो आयो है, फिर भी प्रगति हुई है जग को, रही सदा से हो जन-रोवा क्रीडा-केलि क्रुद्ध पन्नग की। यो वचनो को उद्गीरित कर हुबा महामानव प्रशान्त कुछ, और हुआ जग को भारित यो मानो आमा है निशान्त कुछ, ध्रुव विश्वास, अडिग निष्ठा यह, अविचल मार्ग-क्रमण निरन्तर, तत्त्वाथ वाहर-अभ्यतर, मैनी, दया और करणा से आप्लावित है जीवन सारा, निश्चय ही नवजीवन देगी उसके शुभ विचार की पारा, निरूपण, सखे, कीन यह आत्मजयी है? अरे कौन यह पुण्य महा नर ? अपने एक एक ध्रुव ग में नाप रहा जो सागर-अम्बर । जिराके उदवि गभीर यह नवीन सन्देश समाया- है वह कौन लोक वा वासी? इस डगरो मे कैसे वचन मे आया 7 बम विषपावी जनम के