पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०२

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इस शोणित लिप्सा से प्रस्ता जगती को वरदान दिया है, जरा सुनो, उसकी वाणी ने कैमा नर-करयाण विवर है, मृण्मय बने हिरण्मय छिन मे उसके पावन परस - मान से मृत-प्राय भी अमृत हो ठे केवल उसके दरस - मान से, वे आजानु भुजाएँ उसकी, ले अजलियो मे प्रसादवाण,- आण कर रही हैं गगती में, शान्ति, अहिंसा, मत का वितरण, भर कर शुभ वरदान दृगो में, शिर पर ले अभिशाप जगत् का, मुसकाता है खडा, भरे निज हिय मै अडिगपना पर्वत का, इस यथार्थवादी जग-मग मे विधर. रहा आदश लिये वह, परिपाटी को तोड चला है नवल विचार-विमर्श लिये वह, इस हिंसा को गत-अनुगति को प्रबल शृखला को सण्डित कर, नयो प्रणाली चला रहा है यह सुक्म योगी पण्डितवर, हम विपपाथी जनम .