पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०३

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एक करिश्मा-मा होता जग-जन की आँसो ने आगे सनकी उगे कहो या बुछ पर, भाग आज जगती के जागे, एप्त हो गयी है इम जग में अरे स्वप्न-दर्शग को क्षमता, निपट वास्तविकता - यादो मे, लोग हपण-मय ममता? उल्का बरसानेवाली में कहा अमिय - वपण की क्षमता रधिर - लोल्पो में कब आयी नव विचार - सघर्पण - समता? आज नवल सघपण फा यह इसने माग बताया वेब,- अपने शास्त्र फेक दे, रे, जग, अनुभूत आया विप्लव मानव की विचार-धारा में आयी नूतन महाक्रान्ति यह, जगन्मोक्ष - दायिनी वृत्लेगी सत्य-अहिंसा-पूण शान्ति यहा सखे, आज देखा है कुछ ऐसा सपना, कि सब भेद मिट गया, हो गया एकाचार पराया अपना, इस महापुरुप ने ८० दम विषपायी जनम के