पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एक लंगोटी के बल उसने किया दिग्विजय जगतीतल में, नव्य माग - निर्माण किया है शोणित सिंचित उम दलदल मे, देकर अपने दाँत कर लिया दुन्तिो को भी अपने वश, एक, दो, नही, बरे किये है अपने वश सैन्धव मे दश - दश, निज सीमित पगर मे उसन किया वद्ध नि सीमा को भी, शान्त देह मे भी देही वह हुआ अनन्त टोह का लोभी, उसका जीवन सदा शुद्ध प्रयोगो को शाला है, जग रटोलता है अपना पथ, उसको कर मे उजियाला है, सत्य के अपनी विषमय फुफकारी से जग ने अपना दीप बुझाया, और काटने दौडा उसको जिसने उसे सुपन्य सुझाया, आज अँधेरे में जग अटका, अपने ही जगल मे भटवा, मार्ग - भ्रष्ट होते ही उसको लगा खूर झटके पर झटका, हम विपपायी जनम के