पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०६

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ऋपि कहता है मागं इधर है, मेरे कर मे है उजियाला, जग कहता है पागल तेरे उजियाले मे है अधियाला, स्वय वह है एक चुनौती जग को, वह है एक प्रखर नैतिक बल, वह है इक ललकार घोर-मय, वह है एक शकरी हलचल, पोया-पण्डित नहीं क्योकि यह विचारो का दाता है, वह क्यों चले पुराने पथ पर ? वह नवयुम का निर्माता है। अन्ध जंग-जन को में सुन्दर लोचन, जिससे वह कर सके वास्तविक तथ्यो का विशुद्ध अवलोकन, उसने आज दिये दान धन्य हुई है बसुधा वृद्धा, मानवता भी धन्य हुई है, उसके विप्लवमय प्रसाद से भय - भावना नगग्य हुई है, हम मिट्टी के पुतले भी बढ़- वढ लष्ठ गढ चढने दौडे हैं, गया हो फूले प्राण कि हमने सदियो के वचन तोडे है, हम विपरायी जनम के