पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०७

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आज उठी अश्रुत स्वर - लहरी प्राची जगतो के अम्बर में, नवल उल्लास-बीचि है उमडी यहाँ चराचर-भर मे।। वोल, अरे, दो पग के प्राणी कव तक प्यार किये जायेगा, वोल, अरे दो पग के प्राणी क्षण-भर की स्थिति है जगती में पल-भर की है यहाँ जवानी, मत कर, रे, क्षण-भगुरता मे तु आरोपित चिर अशेपता, झ्या स्थिरता? जन यहा चह रहा पल पल वाल नदी का पानी, यह विस्तृत दिपदेश अमित-सा, महापाश यह परम भगम सा, घपल समम नद यह अनन्त-सा, यह विकराल काल निमम सा, ये दिक्-माल तत्त्व लगते हैं जो कि सनातन, परम चिरतन, ये भी तो हैं अत्तवन्त ही, है आनन्त्य एक मत्ति-भ्रम सा। ce हम विपपायो धनमक