पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१११

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यह रहस्य-उद्घाटन-रत जन पटका मानव को यह रहस्य-उद्घाटन-रत मन, यह असफल जन, यह सरलय तन, हिय में यह अम्बर-विहरण-रण ये टूटे उड्डीयन-सावन । पख नोच किसी खिलाडी ने घरती पर, पर, होतो रहती है उसके अन्तर मे पखो को फर-फर, पृथिवी माता ने पहनायो उसे वैडियाँ किपण की, और, किसी ने सुलगा दी है हिय में त्रिनगी राघपण को परवश है, पर चाह रहा है यह करना रहस्य-उद्घाटन, यह आकुल मन, यह अति लघु जन, पख हीन यह, यह सरलय तन । निगड यह मानव मे युग पद, पाश-बद्ध मानय के युग भुज, और सतत आक्रान्त पिये है उसे अभिशाप-ताप-एज, जिसे मेदिनी ने जकडा है, तुच्छ समक्षता जिसे प्रभजन, और निमति ने डाल दिये हैं, जिमा रोम रोम मे वधन,- , CE