पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/११९

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? किन्तु पता यया कितने गहरे और करेगा यह अवगाहन यह रहस्य-उपाटन-रत यह अति उन्गन, यह मश्लथ तन । अमित ज्ञान-भाण्डार, युमो के यलो से, सचित कर पाया, यह मानव निज रिक्त कोप को गाना रत्नो से भर लाया, जहा सभी दिशि इस अग-जग के स्फुरणो में था केवल सम्भ्रम, जहा अन्ध व्यस्तता मात्र थी, वहा लखा इसने कारण-क्रम निरलता प्रकृति को हराने पहनाये नियमो के ककण यह रहस्य-उद्घाटन-रत जन, फिर भी फिरता है नित उन्मन, 1 झाका आरोहित, किन्तु पैठ गहरे जो तो नियमितता हुई तिरोहित, केवल देवायत्त भावना होने लगी पुन अगु-स्फुरणकारी पदार्थ मानव ने देखा है, जिसे दीप्ति सक्रिय तत्यो मी श्रेणी में डराने लेखा है, जग मे ९६ हग रिपपायी जनम के