पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१२०

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होता रहता इन तत्वों के अणओ का नित शति भवन । जिसे निहार पूछ उटता है 'क्यो? क्यो??' इरा जन का उन्मन मत! मानव जिये कराल काल भेटेगा, अहो कौन सा अणुविशेष वह ? क्यो सहति-भेदन होता है? क्यो होता है अणु अप यह। इत्त प्रश्नो का नहीं दे सका उत्तर यह विज्ञानी, यादृच्छिक अणु - भेदन - लीला अब तक नहीं किसी ने जानी, कहो, क्या न अकुलाये मानव देख-देख यह पटावरण धन ? यह रहस्य - उद्घाटन - रत जन, पव हीन यह, यह मश्लय तन । मानव ने विद्युन्गणियो को देखा नयनो मे अचरज - मानो विश्व आ गया सम्मुख अपना मूल रूप ही तजकर, ज्योति किरण तो थी तरगमय, अय, घनत्य भी हुमा तरगी। मानो ऋण विद्युन्मणियो ये चना ब्रह्माण्ड अनगी। ९७ हम विषपायी जनमक १३