पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१२३

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दृश्य सत्य है, तो सपना भी है यथाथ वा पूर्ण प्रपतन यो विचार गार रहा युगों से यह रहस्य - उद्घाटन - रत जन, नयनो ने घनत्व देसा था, नयना ने तारय निहारा, पर, मानव के महन भान ने यह राय भेद मिटाया सारा, अब देखा कि जगत् है केवल घन औ' मृण विद्युत्कणिका-मय, मो', विद्युन्मणियाँ भी ऐसी जिनका ठिन वास्तविक परिचय, ऐसी मणिया होता रहता जिनका पवन विना ही कारण, तव फिर मारण-काय तक वा जन-हिय से हो क्यो न मिवारण । यो इन्द्रियगण की परिगणना, यो भन हिय को जेंचे अधूरे ये सब, से जग का घटना सश्लेषण, के राव पचिोपण। किन्तु क्या करे ? यवकर बैठे क्या यह मानव हिय हारा सा 7 अपनी भौतिक्ता को कैसे करे ऋमित यह बेचारा-सा शम विषपायी जनमक