पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१२८

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मत कहो कि है निपट पराजय-बादो मम विश्वास, मत यही कि नैराश्य याद मय है मेरे निस्वास, तुम आलोचकगण, क्या जानो विजय पराजयबाद ! मैं ययाथवादी कम फिर भी आश ददान । येत्रीय गायमार रैली ८ अप्रैल १९४४ मन फांसी मशय गांसी तुम हो तुम हो' सर कहते हैं तुम हो, नि समायसुम हो, तुम हो। सुनता हूँ तुम मायापति हो, प्रति भाल के फूकुम हो। क्या हो? कैसे हो? कितने हो, रमे कहाँ ? कुछ तो योलो? यो ये गन्धियो तनिक खोलो। अपलक अलख झलक को अति बाकी क्षाकी तुम हो। प्रकृति - वधूटी के सुहाग के सुनता हूँ, तुम फुकुम हो । यम नियमो के सचालक हो, उनके प्रतिपालक तुम हो, सुनता आता है निशाचरी माया के पालक तुम हो, हाशिएपायी जनम के १४