पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१३१

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क्या जानूं तुम यश हो? तुम तो भानमती भेला हो। कैसे कोई तुमको तुम तो एक पहेला हो । क्या जान तुम हो कि नहीं हो, यहते है तुम हो, तुम हो यह भी एक रहारत है, तुम प्रति - भाल के बुगुम हो। श्यामा गलिया। रंग-बिरंगे चित्र तुम्हारे, बेढगी नामावलिया। तुम प्रकाश के पुज, तुम्हारी अँधियाली बडे सच्चिदानन्द वने हो, जग मे निरानन्द डावा। यहा अनिन्तन व्याप्त हो रहा, फैली है मिथ्या फिर भी सब तोते-से रटते जाते हैं तुम हो, तुम हो सुनता हूँ तुम प्रकृति वधू के सुहाग मामा, तुकुम हो। सारा बहते है कि तुम्हारे तप का हैं परिणाम विश्व कहते ह, यह रही तुम्हारे रमि-प्राणो की यह घारा, १.८ हम षिपाया जनमक AN