पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१३९

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सदाय-निश्चय जूझ रहे हैं, अविश्वास-विश्वास त्वमसि-नासि त्वम्, अस्ति, नास्ति के मचे यहाँ हिम मे शगडे । यह सशय प्रवृत्ति हिय-मन्थन क्यो करती है यदि तुम हो' ठगिनी माया के चिर सुहाग के कुखुम हो। तुम कैसे उलझालं? घडी समस्या है यह, इसको कैसे 2 मुलझाऊँ निज मन-मीन, 'अस्ति'- रस-वसी मे में कैसे यह श्यामल ससार-अतल जल- उदधि - वीचि - विक्षुब्ध यहा प्रबल तरग-वासना में मन- शफरी उलझी लुब्ध यह ऐसा क्यो, यदि अनादि मन- मीन-पीन हो। बतलाओ तुम प्रकृति-वधू क पैसे रजित कुतुम डिस्ट्रिक्ट जेए, गाजीपुर १८ फरवरी १९६१ यहा। बेवक तुम 313 हम विधाथी जनमक