पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४०

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सुन्दर ओ सौन्दर्य-उपासक, तुमने सुन्दर का स्वरूप क्या जाना? मधुर, मणु, सुकुमार, मृदुल ही को क्या तुमने सुन्दर माना? वयो देते हो चिर सुन्दर को इतने छोटे सीमा-बन्धन? कठिन, कराल, ज्वलन्त, प्रखर भी है सौन्दय - प्रकेत चिरन्तन । क्ल वाल, टल-मल, रार-सर, ममर, यही नहीं सुन्दर की वाणो, इन्द्र बम-ध्वनि भी है उनको गहर गभीर गिरा करयाणी। वया सुन्दर बोला है तुमसे अब तक केवल विहम विहसकर? क्या तुमने देखा है उसका केवल मजुल रप हृदय - हर? चया तुमने न लखा है अब तक मुन्दर का विकराल स्वयपर' क्या न निरस पाये हो अब तक प्रलयवर? उसका प हम विषय जनमक 11b