पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४२

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चिर सुन्दर के किस स्वरूप ना, कहो, करोगे तुम अभिनन्दन ? सदा रहेगा क्या सीमित ही तेव पूजन, अन, अमिन दन? ललित, चार, लघु, कोगल, तनु पर हिय न्यौछावर करने वालो, मधुर, मधुर, सुकुमार गीत के तुम मनहर स्वर भरने वालो, नहीं हुई है पूर्ण तुम्हारी अचना अलौकिक, चिर सुदर का स्तवन तुम्हारा रहा अभी तक केवल मौखिक, जब तक उसकी बह कराल छवि कर न सकोगे मन से स्वोरत, तब तक नहीं हो सकोगे तुम अगीत। ओज, तेज, विधाम, बल, दृढता, महानादा क्षमता निममता,- अडिग धीरता, कुलिश कठिनता, भीम शक्तिमत्ता, वित्-गमता,- नित अपराजित राहन-शीलता, नित्य अकम्पित नयल नृजन-रति नित वाचा-भूधर उटाटा नित्य क्रान्ति-ऋति, निरा अमाप गति, हग विपाया निम के 114