पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४३

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ऐमा है सौन्दयं समुच्चय, ऐसा है वह सुन्दर प्रियवर, ऐसा है वह जीवन-रजन, ऐसी है उसकी छवि हिय - हर । कैट्रीय कारागार, बरेली १८ जून १९४ सूना सब स सार हुआ है यो अनुभव होता है मानो सुना सब ससार हुआ है, ऐसा लगता है मानो यह जीवन दूभर भार हुआ है। देख रहा हूँ मैं उन्मन सा, आज रात, निश्चल ध्रुवतारा, और गगन-मण्डल मे मैने यह सप्तपि-समूह निहारा, देखी उपर कृत्तिका, देग्या बिद्ध मृगशिरा का नजारा, देख भ्रमित नभ मूहू हूँ मैं क्यों यह सब व्यापार हुआ है ? यो अनुभव होता है मानो सूना सब ससार हुआ है, गगन विलोका, इन्टक अपलक, झुवा झुक यह धरती भी देखी, भूपर देखे, नदियाँ देखी, ताल-तलयाँ भी अनुलेखी, जीवन देखा विकसित होते, और मरण-लीला भी पेखी, पर, कुछ समझा नही, कदाचित, मुझको वुद्धि-विकार हुआ है। मानव को अवलोरा जग मे, उगते, वढते सरते दिन-दिन, पो जीवन को कोडा देसी, और मरण भी देखा छिन-छिन, पालवली का बलन निहारा, जाते देखें पल, छिन, गिन गिन, मह सब देख, हृदय म अगणित प्रश्नो का सचार हुआ है, यो अनुभव होता है मानो मूना रान ससार हुआ है। हम विपपाया सनम के १२०