पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४४

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मानव वयो आया पृथिवी पर ? यों से कह चला जाना है। विस-किस का इससे नाता है? इसका किस-किस से नाता है ? जाने वाला गया था कि जो जाता है वह फिर आता है? इस उघड-वुन मे ही पडकर मन सम्भ्रम-आगार हुआ है, यो अनुभव होता है मानो सूना सब ससार हुआ है। यदि सब क्षण-भगुर ही है तो अमर-भावना है क्यो प्रिय में? अगर अचिरता है, तो उठती अमृत-तान क्यों मन-इन्द्रिय में? मानव वयो अनन्तता का ही आरोपण करता निग प्रिय में इसी प्रश्न-मन्थन से मम मन विचरित बारम्बार हुआ है, यो अनुभव होता है मानो सूना सन रासार हुआ है। नत राजेश्वर मानव "छोडो माग, हटो सम्मुख से, भय - श्रद्धा से कांपो थर-बर, देपो, यहाँ पधार रहे हैं निखिल सृष्टि के ये राजेश्वर, मस्तक हो इगो आगे कहो कि हम सा सेवक-गण हैं। लख असतार आपका है प्रभु, अप विश्न के रज कण-पण है" " सम्बोधित कर राग अग जग को यो आयो, और प्रति ने अति अचरज से इधर-उधर आयें दौडायो। महाराश यागी २१ हम यिषपायी सनम के १८