पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४५

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यह पौसा आदेश अलख का? उनको यह क्या अम्बर-वाणी' आये यहाँ कौन राजेश्वर यो कह रही प्रकृति कल्याणी। अनिल, अनल, आकाश, विश्व सव, सन ब्रह्माण्ड हिये अचरज भर, रहे है आतुर होकर, आये यहाँ कौन राजेश्वर? इतने मे लख पडा कही पर डग-मग गति दो पग का प्राणी, कुछ उन्नत शिर, फिर अवनत शिर झटपट, अस्फुट, जिसकी वाणी। पूछ प्रति सो ब्रह्माण्ड हस पडे, हँसे सभो दिक् - पाल भयकर, धरा हतो, सम्बर भी विहंसा, व्हिस देश - काल प्रलयकर। उठे यो एक साथ राव अरे यही है क्या राजेश्वर । यह दुबल तन, निपट निवल मन, यह मानव, यह जन्तु निम्नतर? और जगत् को जह रात्ताने उस गानव का क्रिया निरादर, अलम्प - गगन - वाणी विसराकर, रगा घूमने सकल परापर। १६२ हम विषपायी जनम के