पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१७९

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वन गया तुम्हारा खन- रग सम्पनो के दृग को लाली, तव स्वेद - विन्दुओ से पूरित है उनको मतवाली प्याली, उनके परामय व्यजन में अभिव्यजन है तब चिर-श्रम का, उनका धन-बल तो है केवल फल मात्र तुम्हारे सम्भ्रम का, कब तक रहने की इच्छा है इस धोखे मे, बुछ बोलो तो, अब तो उट्ठो, चेतो, जागो कुछ हिलो और कुछ डोलो तो। धरती पर वेतरतीबी से तुम अब तक चलते आये हो, बस इसीलिए तो तुम अब तक दैमाडो पर पलते आये हो, हा, आज कतारे बांध चलो, सम - तालयुक्त निर्वाध चलो, दाये पर दाय, वायें पर- बायें चरणो वो साध चलो। पद-निक्षेपो को धम् - पम् से मैदिनी मंपा दो, थर्रा दो, प्राचीन गगन के आंगन में तुम नवल पताका फहरा दो। हम विषपायी जनम 1 XY