पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८५

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तुम्ही कह रहे हो कि विश्व में है कुछ नियम अटूट, तय पयो पिला रहे हो हमको यह अयुक्ति को यूंट, यदि विस्तृत ब्रह्माण्ड महत् में है नियमितता रच,- पदि है नियमों के स्तम्भो पर निपिल प्राकृतिक मच, समीवारण मिद्धात गणित के यदि है सृष्ट्याधार, तो क्यो कहते हो वि हुआ है हेतु वाद निस्सार? कहो नि नही पा सके हो तुम अब तक कारण ज्ञान, किन्तु न कहो अकारण जग नो, कसे न निज-अपमान, है स्वीकार कि नहीं पा राका मानव अणु का मेद, नहीं मिटा है अब तक उनका यह अन्वेषण खेद, किन्तु मनुज को तार्किकता है अमित प्रेरणा पूर्ण, वह तो इस विसृष्टि का दुगम गढ कर देगी चूण । सर्ववाद बिन क्षण-भर भी तो चल न सकेगा काम, कारण-वाद मार्ग पर ही जग चलता है अविराम । ? अणुशो की, विद्युन्मणियो को, लीला अपरम्पार, औं' सगोल दे रहा चुनौती हमको बारम्बार, किन्तु युक्ति ओं' तक, कहो तो, फब चैठे हिय हार अरव स्वरय ली, जनाद्यन्त लौ, है इनया विस्तार । आज जहा दिखलाई देती हेतु-शून्यता अन्ध यही तक रवि हमे दे रहा प्रसार ज्योति निबन्ध । दिक् मे काल, काल में दिक् को करने जटित रायल, तुमने यह सापेक्ष्यवाद का दिया जगत् को रन, तकवाद है सदा तुम्हारा अनुग्रहीत महान, शुद्ध सत्य शोधक हो तुम भी, है भौतिक विज्ञान । हम पिपायी जनम