पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८६

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किन्तु तुम्हारे इस विवाद से असन्तुष्ट है तक, मानो नही हुआ है तुमको पूर्ण सत्य - सम्पर्क । कहते हो, है काल परिधिमय, वितति-वान है किन्तु, तुम कहते हो, दिक् सोमित है, वर्द्धमान है किन्तु, यदि है काल परिधिमय तो फिर उसके बाहर कौन ? यदि दिक है सीमित तो उसके बाहर किसका मीन? तक कह रहा है कि अगर है अतवन्त दिक्-काल, तो फिर आदिवन्त भी होगी इनकी स्थिति विकराल? 1 2 देश-काल के पहले क्या था ? कुछ तो कहो सुजान इनकी सीमा के बाहर का कुछ तो करो वखान । वर्द्धमान दिक् की होती है किरामे वृद्धि महान् । और काल किससे वृद्धिंगत होता, हे विद्वान् ? मत कहना वि नहीं है किंचित् यहां तर्फ का स्थान, मत कहना कि वास्तविकता ही दिखलाता विज्ञान मो लगता है कि है फही पर मानो कोई क्रान्ति लगता है मानो आवश्यक है विचार में क्रान्ति । राकरपात्मक देश - काल को देकर भौतिक रूप, मानो यह विज्ञान खोदता है नित अन्धा कूप, किन्तु विचार मनुज का कहता है यो बारम्बार- निश्चय ही हट जायेगा यह घटाटोप अम्बार । मेडीपारामार, बरेली ८ जनवरी १९४ 111 हम विपपायी जनम के २१