पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१८७

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जीवन-प्रवाह हहर-हहर-हर-हहर-हहर-हर- यह जीवन-नद उमड रहा है, प्लावित नार दिक्पाल निखिल को यह प्रवाह घन घोर वहा है, पाकर यह प्रसाद चेतन का सकल सृजन अति धन्य हुआ है, यो जीवन के आरोपण से जड ब्रह्माण्ड अनन्य हुआ है, जड रुपिणी निरर्थकता में यह सार्थकता चमक उठी है, प्रवर चेतना की किरणों से सृष्टि चमकती दमक उठी है । मन्दतर से क्या जाने, किरा तुग शैल की अलख शिखर के अभ्यन्तर से, उमड बह रहा है जीवन-नद जाने कितने न्य, अरूप, अलख, निध्वनि, जब धन-ध्वनि-मय हो फरके हहरा- अदिए, अकाल, चिरन्तन, चेतन, जब जीवन नद मनवर लहरा, तर दिन-माल बने उस नद के अति अमाप दो कूल विनारे, औं' भनेर बुबुर सम प्रवटे जल-थल नभ चर न्यारेन्यारे। 48 इम विषयी जनमक rich